उगादि जिसे कुछ लोग युगादि भी कहते है, यह हिन्दू वर्ष का पहला दिन माना जाता है। इसे संवत्सरादि भी कहते है जिसका अर्थ होता है “वर्ष की शुरुआत” । हमारे हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह वर्ष का आरम्भ है और नववर्ष के स्वागत का उत्सव है। भारत की संस्कृति विरासत में यह त्यौहार तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक क्षेत्र में बड़े हर्ष-उल्लास के साथ मानते है। युगादि का शाब्दिक अर्थ है: ‘युग’ मतलब ‘उम्र या समय’ और ‘आदि’ याने ‘प्रारंभ‘. जिसका अर्थ निकलता है “नए समय की शुरुआत”. यह त्यौहार अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से अक्सर मार्च के अंत और अप्रैल माह की शुरुआत में आता है।
इस वर्ष उगादि 9 अप्रैल को मनाया जाएगा।
पंचांग के अनुसार, प्रतिपदा तिथि 8 अप्रैल को रात 23:50 बजे शुरू होगी और 9 अप्रैल को रात 20:30 बजे समाप्त होगी।
उगादि हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण और बहुत ऐतिहासिक त्यौहार माना जाता है। इसे महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के नाम से मनाया जाता है। इस दिन हिंदू मंदिरों में बड़ी संख्या में दान प्राप्त होता है। अलग-अलग राज्यों में इसे अलग-अलग रूप में मनाया जाता है। यहां तक की मॉरीशस में इस दिन राष्ट्रीय अवकाश भी रखा जाता है क्योंकि मॉरीशस संस्कृति हिंदू संस्कृति से काफी प्रभावित रही है।

कैसे मनाते है उगादि
इस दिन लोग विशेष स्नान करते हैं विशेष भोजन व्यंजन बनाते हैं, नए कपड़े खरीदते हैं, एक दूजे को उपहार देते हैं और साथ ही गरीबों को दान भी देते हैं। इस विशेष दिन लोग मंदिर जाते हैं भगवान की पूजन पाठ करते हैं प्रार्थना करते हैं कि यह नव वर्ष हमारे लिए मंगलमय हो हमें जीवन में उन्नति मिले और हम आगे बढ़े। इस दिन उगादि के दिन लोग अपने घरों के आंगन में रंगोली ( जिसे ‘मुग्गुलु’ बभी कहते है ) बनाते है और द्वार को आम के पत्तों की माला जिसे तोरण कहते है, से सजाया जाता है।
इस दिन कच्चे आम, नारियल, गुड़ और इमली को मिला कर एक पाचक पेय भी बनाने की संस्कृति है जिसे ‘पच्चडी’ भी कहा जाता है। पच्चडी को प्रसाद के लिए भी बनाया जाता है, इस प्रसाद की अपनी विधि है। मध्य भारत में इसी तरह का पेय बनाया जाता है जिसे कैरी का पना कहते है। भोजन में भी यहाँ अलग अलग आटे मिलाकर स्वादिस्ट पराठे बनाये जाते है जिसे ‘बोवात्तु’ या ‘पोलेलु’ कहा जाता है। यह तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में काफी प्रचलित है।

उगादि से जुडी मान्यताएं
ऐसा माना जाता है की भगवान (जिन्हे हम “ब्रह्मा जी ” के नाम से भी जानते है जो की सृस्टि के रचयता है ) ने इसी दिन संसार की रचना प्रारम्भ की थी। इसे ब्रह्माण्ड का पहला दिन या सृस्टि की रचना का पहला दिन माना जाता है। वैसे तो पुराणों की कथाओं के अनुसार शिव जी के श्राप से ब्रह्मा जी की पूजन धरती पर नहीं होती , किन्तु सिर्फ कुछ विशेष स्थान और समय पर ब्रह्मा जी की पूजा की जाती है। इसी वजह से आंध्र प्रदेश में उगादि के विशेष दिन ब्रह्मा जी की पूजन की जाती है क्योकि उनकी उन्होंने ही इस संसार की रचना की थी।
ऐसे ही उगादि को लेकर कई और मान्यताएं भी अलग अलग राज्यों के लोगो में व्याप्त है। जैसे कुछ लोग यह मानते है की इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। वहीं कुछ लोगों की यह मान्यता है की इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक हुआ था। तो अन्य कुछ लोगों का ऐसा कहना है की इस दिन युधिष्ठिर जी का भी राज्याभिषेक हुआ था।