क्यों प्रसिद्ध है ब्रज की होली? Why Braj ki holi is Famous worldwide

जब बात होली की आती है तो ऐसा कहा जाता है कि होली के जितने रंग हैं भारत में उतने ही प्रकार की होली मनाई जाती है। भारत में लोगों के मन में होली के प्रति एक अलग ही लगाओ और उत्साह दिखाई देता है। हर प्रांत हर गांव हर शहर में लोग अपने-अपने तरीके से होली मनाते हैं फिर भी सभी से ऊपर ब्रज की होली अपने आप में सबसे अनूठी है जो भारत वर्ष में ही नहीं पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।

Braj ki Holi की होली की पहचान उसकी लठमार होली से तो है ही साथ ही इससे भी है कि जब आग में से पंडा सही-सलामत निकालकर भक्त प्रहलाद की भक्ति को प्रमाणित करता है। ब्रज की होली का तो अंग्रेजी पुस्तक ‘डिस्ट्रिक मेमोयर’ में भी उल्लेख किया गया है। होलिका में पहले गाय के गोबर के कंडे रखे जाते थे, जिस उपले भी कहा जाता है। धीरे-धीरे समय के साथ इसका परिवर्तन हुआ और 1971 में सबसे पहले होलीका प्रतिमा का दहन करने की शुरुआत हुई। इस परंपरा में नागरिक मंडल लालगंज के संस्थापक अध्यक्ष के अनुसार यह होलीका प्रतिमा होली वाली गली में सबसे पहले जलाई गई। 26 जनवरी 1976 को गणतंत्र दिवस के दिन ब्रज में नागरिक मंडल का गठन हुआ।

ब्रज की होली में जो उमंग और उत्साह और देखने को मिलता है वैसा रंग पुरी दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलता। यहां ब्रिज में सिर्फ रंगों की होली ही नहीं बल्कि, गुलाल की होली, लट्ठमार होली, लड्डू मार होली, और फूलों की होली इस प्रकार की अलग-अलग होली मनाई जाती है, जिसे खेलने के लिए देश के अलग-अलग प्रान्त से लोग आते हैं। यहां तक की विदेशी भी आते हैं जो इस बहुत ही अद्भुत माहौल का आनंद उठाकर खुद को सौभाग्यशाली महसूस करते हैं। आखिर क्यों न हो बरसाना वृंदावन तो श्री कृष्ण का धाम है और यहां जो आ जाता है उसे एक अलग ही अनुभूति होती है, वह श्री कृष्ण के प्रेम में मोहित होकर यही का होकर रह जाता है।

लोग देश भर से यहां अलग-अलग होली देखने आते हैं जो की अलग-अलग स्थान और नाम से मनाई जाती है यहां विशेष कर लोग वृंदावन नंदगांव बरसाना और दाऊ की होली देखने के लिए और उसका आनंद लेने के लिए आते हैं।

ब्रज की होली सिर्फ एक दिन की होली का त्यौहार नहीं होता यह सवा महीने याने 40 दिन तक चलने वाला एक महोत्सव होता है जो बसंत पंचमी से शुरू हो जाता है। इसीलिए तो यह होली विश्व प्रसिद्ध है क्योंकि यह बसंत पंचमी से शुरू होकर रंग पंचमी तक चलता है। तो आईए देखते हैं इस वर्ष ब्रज की होली का क्या प्रोग्राम है:

ब्रज की होली का कैलेंडर 2024 – Braj Holi Calendar 2024

  • 17 मार्च 2024- श्रीजी मंदिर में लड्डू होली (बरसाना) | Laddo Holi in Barsana
  • 18 मार्च 2024-  लट्ठमार होली (बरसाना) | Lattha mar holi in Barsana
  • 19 मार्च 2024- नंद भवन में लट्ठमार होली (नंदगांव) | Latthmar Holi in Nand bhawan (Nandgoun)
  • 20 मार्च 2024- रंगभरी एकादशी, फूल वाली होली (वृंदावन) | Phool wali Holi
  • 21 मार्च 2024- छड़ीमार होली (गोकुल) | Chhari mar Holi, Gokul
  • 23 मार्च 2024- विधवा होली, राधा गोपीनाथ मंदिर (वृंदावन ) | Widow’s Holi in Radha Gopinath Temple
  • 24 मार्च 2024- होलिका दहन (द्वारकाधीश मंदिर डोला, मथुरा विश्राम घाट, बांके बिहारी वृंदावन में)
  • 25 मार्च 2024- पूरे ब्रज में होली का उत्सव मनाया जाएगा | Braj Holi
  • 26 मार्च 2024- दाऊजी का हुरंगा | Huranga, Dauji Holi
  • 30 मार्च 2024- रंग पंचमी पर रंगनाथ जी मंदिर में होली | Rang Panchami at Rangnath Ji Temple

आप चाहे तो पुरे मथुरा में घूम कर पुरे होली महोत्सव का आनंद ले सकते है। एक टैक्सी कार आपको सभी उत्सवों में घुमा देगी और फिर आपके होटल तक छोड़ देगी।

ब्रज में कैसे मनाई जाती है अलग अलग तरह की होली

braj ki laddo mar holi

लड्डू मार होली

यह होली बरसाने में मनाई जाती है। बरसाना वह स्थान है जहां की राधा रानी का जन्म हुआ था। इस दिन युवतियां और महिलाएं यहां ग्वालो को लड्डू से प्रहार करती है। होली के रूप में ग्वालो को लड्डू मारकर अपने आकर्षण, प्रेम और उत्साह जताया जाता है और महिलाएं यहां फाग गाती है तो एक अद्भुत दृश्य यहां देखने को मिलता है। तो भला कौन इससे वंचित रहना चाहेगा?

braj ki lattha mar holi

लट्ठमार होली

हर वर्ष फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन यहां लठमार होली का आयोजन होता है। जिसमें के नंद गांव से आए ग्वालो पर बरसाने की महिलाएं लट्ठ मार कर होली मनाती हैं। ऐसा कहा जाता है कि इसका निमंत्रण एक दिन पहले बरसाने से नंदगांव भी भेजा जाता है। यह पारंपरिक मान्यताओं पर आधारित त्यौहार है। देखने में तो यह होता है लट्ठ मार लेकिन इसमें ग्वालो को चोट नहीं लगाती बल्कि वह ग्वालिनों के लट्ठ की चोट में बसे प्रेम का आनंद लेकर खुश होते हैं।

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छड़ी मार होली

गोकुल में भी होली इसी उत्साह के साथ मनाई जाती है लेकिन यहां महिलाओं के हाथों में लाठी की जगह छड़ी होती है। यहां गोपियाँ कान्हा पर छड़ी बरसाती है और अपने प्रेम का इजहार करती हैं। यहां सालों पुरानी ऐसी परंपरा है जिसमें के कान्हा जी की पालकी निकलती है और उसके पीछे हजारों गोपियाँ सज धज कर अपने हाथों में छड़ी लेकर उनके पीछे-पीछे चलती है। यह भी एक देखने लायक अनूठा अनुभव होता है जिसे देखने देशभर के लोग आते हैं।

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धुलेंडी की धूम

होली के एक दिन बाद धुलेंडी मनाई जाती है जिसमें के होली के अलग-अलग रंग और गुलाल से एक दूजे को रंगा जाता है। मंदिरों में बड़े-बड़े आयोजन होते हैं। मथुरा के सबसे प्रख्यात मंदिर द्वारकाधीश में भी इस खास होली का बहुत अच्छे से आयोजन किया जाता है। अगले ही दिन बल्दे और दाऊजी मंदिर में हुरंगा मनाया जाता है जिसमें के आसपास के हुरियारे होली खेलने आते हैं। बहुत देर तक यह कार्यक्रम चलता है जिसमें के सभी एक दूसरे को रंग लगाकर अपना प्रेम प्रदर्शित करते हैं।

जहां यहां ब्रज मंडल होली के उत्सव का आयोजन करता है जिसमें कि हमारी परंपराओं को दिखाया जाता है जिसमें हास्यवंग भी होता है अबीर और गुलाल के साथ फूल होली भी मनाई जाती है संगीत काव्य आदि का भी समावेश होता है इसमें ब्रज की लोक लीलाएं सॉन्ग नौटंकी जैसे प्रदर्शन भी किए जाते हैं जो कि हमारी भारतीय संस्कृति की झलक दिखाता है

लोक मान्यताएँ

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आज भी लाल है गुलाल कुंड का पानी

गोवर्धन पर्वत से करीब 3 किलोमीटर दूर ‘गांठोली’ नाम का एक गांव है जिसका नाम यहाँ हुई होली-लीला से ही जुड़ा हुआ माना जाता है। यहां होली खेलते समय राधा माधव सिंहासन पर अभी विराजमान हुए थे तब कुछ सखियों ने अपने वस्त्रों में गांठ लगा ली थी। इसी कारण इस गांव का नाम गांठोली हो गया। यह वही स्थान है जहां राधा -कृष्ण ने अपनी सखियों के साथ होली खेली थी, होली का उत्सव मनाया था। फागुन मास में कहा जाता है कि आज भी यह गुलाल कुंड का जल गुलाबी नजर आता है क्योंकि गुजरात महाराष्ट्र आदि स्थानों से आने वाले सभी लोग कुंड पर होली खेल कर प्रिया और प्रीतम के रंग में रंग जाते हैं।

फालेन की होली

मथुरा के पास ही एक छोटा सा क़स्बा या कहे की गांव है जिसका नाम है ‘फालेन’। यहाँ की होली अपनेआप में अनूठी होती है जो की दुनियाभर में प्रसिद्द है। यहाँ पुरोहित जिसे की ‘पण्डा’ कहा जाता है, होलिका दहन समय यह पण्डा जलती हुई अग्नि पर से चलते हुए आग के अंगारों पर से निकल जाता है। यह दृश्य देखने के लिए वहां काफी भीड़ होती है और लोग इसे चमत्कार ही मानते है की इतनी ज्यादा अग्नि होने पर भी पण्डे को कुछ नहीं होता। यह प्रह्लाद के जीवन की उस घटना का साक्षात प्रतिक है जिसमे प्रह्लाद को भी भगवान ने अग्नि से बचाया था।

जाबरा में जेठ-भाभी की होली

जाबरा नामक गांव में जेठ-भाभी की होली बड़े उत्साह के साथ खेली जाती है। जेठ के रूप में बलराम जी के विषय में जुड़ी हुई एक लोक कथा बहुत प्रचलित है। बलराम जी ने जो की ब्रज के ठाकुर माने जाते हैं और श्री कृष्ण के बड़े भाई है, उन्होंने राधा रानी के साथ होली खेलने की इच्छा व्यक्त की थी। लेकिन यह बात सुनकर राधा जी विचलित सी हो गई थी, तब श्री कृष्ण ने मुस्कुरा कर उन्हें बताया था कि त्रेता युग में यही बलराम जी लक्ष्मण थे और आप सीता मैया थीं। इसलिए इस रूप में आप उनकी भाभी हुईं और वह आपके देवर। इसलिए बलराम जी अपनी भाभी के साथ होली खेलना चाहते हैं। इसी प्रकार जाबरा गांव में जेठ और भाभी की होली काफी उमंग और उल्लास के साथ मनाई जाती है।

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