हे नाथ! अब तो ऐसी दया हो,
जीवन निरर्थक जाने न पाए।
यह मन न जाने क्या क्या कराए,
कुछ बन न पाया अपने बनाए।
संसार में ही आसक्त रहकर,
दिन-रात अपने मतलब की कह कर।
सुख के लिए लाखों दुःख सहकर,
ये दिन अभी तक यों ही बिताए।
हे नाथ! अब तो ऐसी दया हो,
जीवन निरर्थक जाने न पाए।
ऐसा जगा दो फिर सो न जाऊँ,
अपने को निष्काम प्रेमी बनाऊं।
मैं आपको चाहूं और पाऊँ,
संसार का भय रह कुछ न जाए।
हे नाथ! अब तो ऐसी दया हो,
जीवन निरर्थक जाने न पाए।
वह योग्यता दो सत्कर्म कर लूँ ,
अपने हृदय में सद्भाव भर लूँ।
नर तन है साधन भवसिंधु तर लूँ ,
ऐसा समय फिर आए न आए।
हे नाथ! अब तो ऐसी दया हो,
जीवन निरर्थक जाने न पाए।
हे नाथ! मुझे निरभिमानी बना दो,
दारिदृया हर लो दानी बना दो।
आनंदमय विज्ञानी बना दो,
मैं हूँ तुम्हारी आशा लगाए।
हे नाथ! अब तो ऐसी दया हो,
जीवन निरर्थक जाने न पाए।
copyright to the original owner/creator
अन्य सम्बंधित पोस्ट भी बढ़ें
7 thoughts on “हे नाथ अब तो ऐसी दया हो – प्रार्थना”