सनातन धर्म में यू तो सभी देवी – देवताओं का अपना बड़ा स्थान है लेकिन जब बात भोलेनाथ की आती है रूद्र अवतार की आती है तो फिर सभी शिव जी को ही सबसे बड़ा मानते है। देवों के देव आदिदेव महादेव ही सबसे बड़े माने जाते है। कहने में तो भोलेनाथ बड़े ही भोले है लेकिन जब बात भक्ति की आती है तो भोलेनाथ अपने भक्तों के धैर्य की परीक्षा में अच्छे से लेते है। कहते है की शिव जी तो ऐसे देव है जिनसे आप सिर्फ एक लोटा जल चढ़ा कर भी प्रसन्न कर सकते है।
शिव भगवान को प्रसन्न करने के लिए लोग अलग अलग पूजन पाठ का सहारा लेते है जिसमे की रुद्राभिषेक, संकट सोमवार के व्रत , शिवाष्टक, आदि विशेष है। लेकिन इन सभी से जो सबसे विशेष और साधक के लिए अति फलदाई है वह है रुद्राष्टक का पाठ। अगर आप भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते है तो “श्री रुद्राष्टक पाठ” जरूर करें।
क्यों है शिव रुद्राष्टक का इतना महत्त्व
यदि आप पर कोई विपत्ति है, कष्ट है, शत्रु से आप बहुत परेशान है तो शिव जी की उपासना से आपको बहुत लाभ हो सकता है। अपने पास के किसी भी मंदिर या अपने घर पर ही भगवान शिव की फोटो या शिवलिंग के सामने कुशा के आसन पर बैठकर सुबह या शाम समय ‘श्री शिव रुद्राष्टकम’ का पाठ कम से कम लगातार 7 या 21 दिनों तक करने आपके कष्टों का जरूर ही निवारण होगा।
शिव जब किसी पर कृपा करते है तो उसका उद्दार कर देते है, उसकी सफलता निश्चित हो जाती है। रामायण में भी, मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम को जब रावण पर विजय प्राप्त करनी थी तब महा-बलशाली शत्रु पर विजय पाने के लिए राम जी ने रामेशवरम में भोलेनाथ की आराधना के लिए शिवलिंग की स्थापना की और रूद्राष्टकम स्तुति का पाठ किया। परिणाम हम सभी जानते है की शिव कृपा से ही रावण जैसे महाबलशाली योध्दा का अंत संभव हो सका।
आप भक्तजनों के लिए यहां श्री शिव रूद्राष्टकम स्तुति दी गई है और इसका हिंदी में अर्थ सहित अगर आप डाउनलोड करना चाहे तो पीडीऍफ़ भी दी गई है।
॥ श्रीरुद्राष्टकम् – Shri Shiv Rudrashtakam stotram॥
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥ १॥
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं
गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ॥ २॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं
मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥ ३॥
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ ४॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ ५॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ ६॥
न यावत् उमानाथ पादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ ७॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥ ८॥
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥
॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं संपूर्णम् ॥
यह है वह शामात्कारी स्तोत्रम जो तुलसीदास जी ने मानव कल्याण के लिए लिखा – tulsidas rudrashtakam lyrics
पढ़ते समय आपकी लय भंग न हो इसके लिए अर्थ नीचे अलग से दिया जा रहा है। संपूर्ण अर्थ सहित रुद्राष्टक को पीडीऍफ़ के रूप यहाँ से डाउनलोड करें
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