हिन्दू धर्म के प्रमुख देवता भोलेनाथ को सच्चे मन से पूजने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। शास्त्रों के अनुसार, शिवजी को शिवाष्टक अत्यंत प्रिय है और जो भी शिव भक्त इस शिवाष्टक का पाठ करता है, उसको हर बुरी परिस्थिति से शीघ्र ही मुक्ति मिलती है। नंदी भगवान भोलेनाथ के वाहन हैं, उन्हें भोलेनाथ का द्वारपाल भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव की कृपा प्राप्त करनी है तो उनकी सवारी नंदी को खुश करना जरूरी है। गंगा, चंद्रमा, त्रिशूल, भस्म को शिवजी धारण करते हैं।
शिवजी की उपासना करने के लिए अनेक मंत्रों, पाठ आदि की रचना हुई जिसमें से शिवजी की प्रशंसा में अनेक अष्टकों की भी रचना हुई है, जिसमें से शिवाष्टक का विशेष महत्व होता है। भगवान शिव को सर्वाधिक प्रिय शिवाष्टक आदि शंकरचार्य जी द्वारा रचित किया गया है। शिवजी का यह शिवाष्टक आठ पदों में विभाजित हैं जिसकी स्तुति करने से शिव खुश होते हैं। सावन, महाशिवरात्रि आदि शिवजी के मुख्य पर्वों पर शिवाष्टक का पाठ करने से भाग्यहीन व्यक्तियों को भी सफलता मिलती है। आइए जानते हैं।
आइये जानते है बहुत ही सुन्दर Shivashtak या Shiv Stuti के Hindi Lyrics
शिवाष्टक का पाठ | Shivashtak – Hindi Lyrics
जय शिव शंकर, जय गंगाधर, करुणाकर करतार हरे।
जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशि सुखसार हरे।।
जय शशि शेखर, जय डमरूधर, जय जय प्रेमागर हरे।
जय त्रिपुरारी, जय मदहारी, अमित, अनन्त, अपार हरे।।
निर्गुण जय जय, सगुण अनामय, निराकार साकार हरे।।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ।।1।।
जय रामेश्वर, जय नागेश्वर, वैद्यनाथ, केदार हरे ।।
मल्लिकार्जुन, सोमनाथ जय, महाकाल ओंकार हरे।।
त्रयम्बकेश्वर, जय घुश्मेश्वर, भीमेश्वर, जगातार हरे।।
काशी पति श्री विश्वनाथ जय, मंगलमय, अघहार हरे॥
नीलकण्ठ जय, भूतनाथ जय, मृत्युञ्जय अविकार हरे। ।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ।।2।।
जय महेश, जय जय भवेश, जय आदिदेव, महादेव विभो।
किस मुख से हे गुणातीत, प्रभु तव अपार गुण वर्णन हो ।।
जय भवकारक तारक, हारक, पातक-दारक शिव शम्भो ।।
दीन दुःखहर, सर्व सुखाकर, प्रेम-सुधाधर दया करो।।।
पार लगा दो भवसागर से, बन कर कर्णाधार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ।।3।।
जय मनभावन, जय पतितपावन, शोक नशावन शिवशम्भो।
विपद विदारन, अधम उद्धारन, सत्य सनातन शिवशम्भो।।
सहज वचनहर, जलज नयनवर, धवल-वरन-तन शिवशम्भो ।
मदन-कदन-कर, पाप-हरन-हर, चरन-मनन-धन शिवशम्भो।।
विवसन, विश्वरूप प्रलयंकर, जग के मूलाधार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ।।4।।
भोलानाथ कृपालु, दयामय, औढरदानी शिव योगी।
निमिष मात्र में देते हैं, नव निधि मनमानी शिव योगी।।
सरल हृदय, अति करुणा सागर, अकथ कहानी शिव योगी ।।
भक्तो पर सर्वस्व लुटाकर, बने मसानी शिव योगी।
स्वयं अकिंचन, जन मन रंजन, पर शिव परम उदार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ।।5।।
आशुतोष ! इस मोहमायी निद्रा से मुझे जगा देना।।
विषम वेदना से विषयों की मायाधीश छुड़ा देना ।।
रूप सुधा की एक बूंद से जीवन मुक्त बना देना।
दिव्य ज्ञान भण्डर युगल चरणों की लगन लगा देना ।।
एक बार इस मन मन्दिर में कीजे पद-संचार हरे।।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ॥6॥
दानी हो दो भिक्षा में, अपनी अनुपायनी भक्ति प्रभो।
शक्तिमान हो दो अविचल, निष्काम प्रेम की शक्ति प्रभो।
त्यागी हो दो इस असार, संसार से पूर्ण विरक्ति प्रभो ।।
परमपिता हो दो तुम अपने, चरणों में अनुरक्ति प्रभो ।।
स्वामी हो निज सेवक की, सुन लेना करुण पुकार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ॥7॥
तुम बिन ‘बेकल’ हूँ प्राणेश्वर, आ जाओ भगवन्त हरे।
चरण शरण की बांह गहो, हे उमारमण प्रियकन्त हरे।।
विरह व्यथित हूँ दीन दु:खी हूँ, दीनदायल अनन्त हरे। ।
आओ तुम मेरे हो जाओ, आ जाओ श्रीमन्त हरे ।।
मेरी इस दयनीय दशा पर, कुछ तो करो विचार हरे।।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ॥8॥
भगवान शिव-
शिव जी के बारे कौन नहीं जानता होगा। शिव देवों के देव महादेव कहलाते हैं। महादेव अनादि और अनंत हैं। शिव जी के अस्त्र त्रिशूल के बारे में तो सभी जानते होंगे। पर क्या आपको पता है त्रिशूल के अलावा और शिव जी के तीन अस्त्र हैं। शिव जी के स्वरूप से कई अस्त्रों का निर्माण हुआ है। शिव जी के अस्त्रों में सृष्टि का विनाश करने की शक्ति थी। शिव जी ने अपने अस्त्रों को देवता और राक्षस को दे दिए थे। शिव जी को आदिनाथ शिव के नाम से भी जाना जाता है। आदिनाथ शिव का जो स्मरण करता है। उसे शैव कहा जाता है।आज हम जानेंगे। शिव जी के अस्त्रों के नाम क्या है।
शिव जी के अस्त्रों के नाम और उनका रहस्य-
आज हम आपको बताएँगे शिव जी के अस्त्र के बारे में। क्यों थे यह अस्त्र शिव जी के लिए प्रिय। इन अस्त्रों से देवता घबराते थे। अस्त्रों के नाम निम्नलिखित हैं।
त्रिशूल-
भगवान शिव के पास कई अस्त्र-शस्त्र थे। परन्तु उन्होंने कई शस्त्र देवताओं को दे दिए थे। शिव जी के पास सिर्फ त्रिशूल अस्त्र था। पर अत्यधिक घातक था। भगवान शिव के हाथों में त्रिशूल नजर आता है। अस्त्र त्रिशूल शिव जी के स्वरुप से जुड़ा हुआ है। शिव ने इस अस्त्र से कई दैत्यों का वध किया था। शिव जी रावण की भक्ति से प्रसन्न होकर अपना त्रिशूल दान कर दिया था। जब रावण की मृत्यु हुई। तब स्वयं अस्त्र त्रिशूल शिव जी के पास वापस आ गया था। शिव जी का त्रिशूल 3 प्रकार के कष्टों का सूचक है। दैनिक, दैविक और भौतिक। यह विनाश का प्रतीक मन जाता है। शिव जी के त्रिशूल में 3 प्रकार की शक्तियां होती हैं। सत,रज और तम। शिव जी का महाअस्त्र त्रिशूल था।
भगवान शिव के ऐसे अस्त्र जो है सर्वदा अभेद्य
भगवान शिव-
शिव जी के बारे कौन नहीं जानता होगा। शिव देवों के देव महादेव कहलाते हैं। महादेव अनादि और अनंत हैं। शिव जी के अस्त्र त्रिशूल के बारे में तो सभी जानते होंगे। पर क्या आपको पता है त्रिशूल के अलावा और शिव जी के तीन अस्त्र हैं। शिव जी के स्वरूप से कई अस्त्रों का निर्माण हुआ है। शिव जी के अस्त्रों में सृष्टि का विनाश करने की शक्ति थी। शिव जी ने अपने अस्त्रों को देवता और राक्षस को दे दिए थे। शिव जी को आदिनाथ शिव के नाम से भी जाना जाता है। आदिनाथ शिव का जो स्मरण करता है। उसे शैव कहा जाता है।आज हम जानेंगे। शिव जी के अस्त्रों के नाम क्या है।
शिव जी के अस्त्रों के नाम और उनका रहस्य-
आज हम आपको बताएँगे शिव जी के अस्त्र के बारे में। क्यों थे यह अस्त्र शिव जी के लिए प्रिय। इन अस्त्रों से देवता घबराते थे। अस्त्रों के नाम निम्नलिखित हैं।
त्रिशूल-
जैसा की हम अक्सर शिव जी की प्रतिमा या फोटो में देखते है की उनके पास एक से अधिक अस्त्र होते है। आखिर इसलिए तो उन्हें संहारक कहा गया है। पापियों और राक्षशों का नाम करने के लिए भगवन शिव अस्त्र-शस्त्र से सुजज्जित रहते है। शिव जी के पास जो त्रिशूल सिखाई देता है यह भयानक शस्त्र है जिससे बचना संभव नहीं। शिव भगवन ने अपने इसी त्रिशूल से कई सारे भयानक राक्षशों का नाश किया। ऐसी मान्यता है की रावण की भक्ति से प्रसन्न हो कर शिव भगवान ने अपना त्रिशूल रावण को दे दिया था। आगे जाकर जब श्री नाम के हाथों रावण का अंत हुआ तब शिव जी का त्रिशूल उनके पास स्वयं लौट आया। ऐसा माना जाता है की शिव जी के त्रिशूल में तीन प्रकार के गुण , सत , रज और तम होते है। और यह तीनों कष्टों दैनिक, दैविक और भौतिक इन तीनों का नाश कर देता है।
पिनाक धनुष-
भगवान शिव का पिनाक धनुष महाप्रलयंकारी था। पिनाक धनुष धारण करने के कारण ही शिव जी पिनाकी कहलाये जाते हैं। इस धनुष की टंकार से बादल फट जाते थे। धरती डगमगा जाती थी। ऐसा लगता था धरती पर भूकंप आ गया है। यह पिनाक धनुष अत्यधिक शक्तिशाली था। देवताओं का काल जब समाप्त हुआ। तब इस धनुष को देवरात के हाथों सौंप दिया गया था। देवरात जनक के पूर्वज थे। शिव जी ने पिनाक धनुष को स्वयं बनाया था। इस धनुष को उठाने की क्षमता किसी के पास नहीं थी। परन्तु राम ने इस धनुष को भंग कर दिया था।
चक्र-
जब कभी चक्र की बात आती है तो हमें सुदर्शन चक्र की ही याद आती है। सुदर्शन चक्र जो की हम हमेशा विष्णु भगवान के हाथ में देखते है। लेकिन यह जानकारी बहुत ही कम लोगो को होगी की वास्तव में चक्र का निर्माण शिव जी द्वारा किया गया था। शिव जी द्वारा बनाया गया चक्र “भवरेंदु” नाम से जाना जाता हैं। कालांतर में यही भवरेंदु चक्र विष्णु जी को समर्पित हुआ और इसकी प्रसिद्धि सुदर्शन चक्र के नाम से हुई, इसकी भी एक अलग कथा है।
भगवान शिव के 108 नाम
भक्त इन्हें शंकर, भोलेनाथ, महादेव आदि नामों से पुकारते हैं. इनके 108 नाम ऐसे हैं जिनको लेने मात्र से भक्तों के कष्ट दूर हो जाते हैं जो कि इस प्रकार है –
1. शिव:- कल्याण स्वरूप
2. महेश्वर:- माया के अधीश्वर
3. शम्भू:- आनंद स्वरूप वाले
4. वामदेव:- अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले
5. शशिशेखर:- चंद्रमा धारण करने वाले
6. पिनाकी:- पिनाक धनुष धारण करने वाले
7. विरूपाक्ष:- विचित्र अथवा तीन आंख वाले
8. कपर्दी:- जटा धारण करने वाले
9. नीललोहित:- नीले और लाल रंग वाले
10. शंकर:- सबका कल्याण करने वाले
11. शूलपाणी:- हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले
12. खटवांगी:- खटिया का एक पाया रखने वाले
13. विष्णुवल्लभ:- भगवान विष्णु के अति प्रिय
14. शिपिविष्ट:- सितुहा में प्रवेश करने वाले
15. अंबिकानाथ:- देवी भगवती के पति
16. श्रीकण्ठ:- सुंदर कण्ठ वाले
17. भक्तवत्सल:- भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले
18. भव:- संसार के रूप में प्रकट होने वाले
19. शर्व:- कष्टों को नष्ट करने वाले
20. त्रिलोकेश:- तीनों लोकों के स्वामी
21. शितिकण्ठ:- सफेद कण्ठ वाले
22. शिवाप्रिय:- पार्वती के प्रिय
23. उग्र:- अत्यंत उग्र रूप वाले
24. कपाली:- कपाल धारण करने वाले
25. कामारी:- कामदेव के शत्रु, अंधकार को हरने वाले
26. सुरसूदन:- अंधक दैत्य को मारने वाले
27. गंगाधर:- गंगा को जटाओं में धारण करने वाले
28. कृपानिधि:- करुणा की खान
29. महाकाल:- कालों के भी काल
30. ललाटाक्ष:- माथे पर आंख धारण किए हुए
31. भीम:- भयंकर या रुद्र रूप वाले
32. परशुहस्त:- हाथ में फरसा धारण करने वाले
33. मृगपाणी:- हाथ में हिरण धारण करने वाले
34. जटाधर:- जटा रखने वाले
35. कैलाशवासी:- कैलाश पर निवास करने वाले
36. कवची:- कवच धारण करने वाले
37. कठोर:- अत्यंत मजबूत देह वाले
38. त्रिपुरांतक:- त्रिपुरासुर का विनाश करने वाले
39. वृषांक:- बैल-चिह्न की ध्वजा वाले
40. वृषभारूढ़:- बैल पर सवार होने वाले
41. भस्मोद्धूलितविग्रह:- भस्म लगाने वाले
42. सामप्रिय:- सामगान से प्रेम करने वाले
43. स्वरमयी:- सातों स्वरों में निवास करने वाले
44. त्रयीमूर्ति:- वेद रूपी विग्रह करने वाले
45. अनीश्वर:- जो स्वयं ही सबके स्वामी है
46. सर्वज्ञ:- सब कुछ जानने वाले
47. परमात्मा:- सब आत्माओं में सर्वोच्च
48. सोमसूर्याग्निलोचन:- चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आंख वाले
49. हवि:- आहुति रूपी द्रव्य वाले
50. यज्ञमय:- यज्ञ स्वरूप वाले
51. सोम:- उमा के सहित रूप वाले
52. पंचवक्त्र:- पांच मुख वाले
53. सदाशिव:- नित्य कल्याण रूप वाले
54. विश्वेश्वर:- विश्व के ईश्वर
55. वीरभद्र:- वीर तथा शांत स्वरूप वाले
56. गणनाथ:- गणों के स्वामी
57. प्रजापति:- प्रजा का पालन- पोषण करने वाले
58. हिरण्यरेता:- स्वर्ण तेज वाले
59. दुर्धुर्ष:- किसी से न हारने वाले
60. गिरीश:- पर्वतों के स्वामी
61. गिरिश्वर:- कैलाश पर्वत पर रहने वाले
62. अनघ:- पापरहित या पुण्य आत्मा
63. भुजंगभूषण:- सांपों व नागों के आभूषण धारण करने वाले
64. भर्ग:- पापों का नाश करने वाले
65. गिरिधन्वा:- मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले
66. गिरिप्रिय:- पर्वत को प्रेम करने वाले
67. कृत्तिवासा:- गजचर्म पहनने वाले
68. पुराराति:- पुरों का नाश करने वाले
69. भगवान्:- सर्वसमर्थ ऐश्वर्य संपन्न
70. सूक्ष्मतनु:- सूक्ष्म शरीर वाले
71. प्रमथाधिप:- प्रथम गणों के अधिपति
72. मृत्युंजय:- मृत्यु को जीतने वाले
73. जगद्व्यापी:- जगत में व्याप्त होकर रहने वाले
74. जगद्गुरू:- जगत के गुरु
75. व्योमकेश:- आकाश रूपी बाल वाले
76. महासेनजनक:- कार्तिकेय के पिता
77. चारुविक्रम:- सुन्दर पराक्रम वाले
78. रूद्र:- उग्र रूप वाले
79. भूतपति:- भूतप्रेत व पंचभूतों के स्वामी
80. स्थाणु:- स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले
81. अहिर्बुध्न्य:- कुण्डलिनी- धारण करने वाले
82. दिगम्बर:- नग्न, आकाश रूपी वस्त्र वाले
83. अष्टमूर्ति:- आठ रूप वाले
84. अनेकात्मा:- अनेक आत्मा वाले
85. सात्त्विक:- सत्व गुण वाले
86. शुद्धविग्रह:- दिव्यमूर्ति वाले
87. शाश्वत:- नित्य रहने वाले
88. खण्डपरशु:- टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले
89. अज:- जन्म रहित
90. पाशविमोचन:- बंधन से छुड़ाने वाले
91. मृड:- सुखस्वरूप वाले
92. पशुपति:- पशुओं के स्वामी
93. देव:- स्वयं प्रकाश रूप
94. महादेव:- देवों के देव
95. अव्यय:- खर्च होने पर भी न घटने वाले
96. हरि:- विष्णु समरूपी
97 .पूषदन्तभित्:- पूषा के दांत उखाड़ने वाले
98. अव्यग्र:- व्यथित न होने वाले
99. दक्षाध्वरहर:- दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले
100. हर:- पापों को हरने वाले
101. भगनेत्रभिद्:- भग देवता की आंख फोड़ने वाले
102. अव्यक्त:- इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले
103. सहस्राक्ष:- अनंत आँख वाले
104. सहस्रपाद:- अनंत पैर वाले
105. अपवर्गप्रद:- मोक्ष देने वाले
106. अनंत:- देशकाल वस्तु रूपी परिच्छेद से रहित
107. तारक:- तारने वाले
108. परमेश्वर:- प्रथम ईश्वर
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