श्री राम स्तुति – श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन | Shri Ram Stuti – Hindi Lyrics – PDF Download

सहनशीलता व धैर्य भगवान राम का प्रमुख गुण है। अयोध्या का राजा होते हुए भी श्री राम ने संन्यासी की तरह ही अपना जीवन व्यापन किया। यह उनकी सहनशीलता व सरलता को दर्शाता है।

भगवान राम काफी दयालु स्वभाव के रहें है। उन्होंने दया कर सभी को अपनी छत्रछाया में लिया। उन्होंने सभी को आगे बढ़ कर नेतृत्व करने का अधिकार दिया। सुग्रीव को राज्य दिलाना उनके दयालु स्वभाव का ही प्रतिक है। 

भगवान राम ने विषम परिस्थितियों में भी स्थिति पर नियंत्रण रख सफलता प्राप्त की व हमेशा वेदों और मर्यादा का पालन किया। स्वयं के सुखों से समझौता कर उन्होंने न्याय और सत्य का साथ दिया।

हर जाति, हर वर्ग के व्यक्तियों के साथ भगवान राम ने मित्रता की। हर रिश्तें को श्री राम ने दिल से निभाया। केवट हो या सुग्रीव, निषादराज या विभीषण सभी मित्रों के लिए उन्होंने स्वयं कई बार संकट झेले।

भगवान राम एक कुशल प्रबंधक भी है। सभी को साथ लेकर चलने वाले। भगवान राम के बेहतर नेतृत्व क्षमता की वजह से ही लंका जाने के लिए पत्थरों का सेतु बन पाया।

भगवान राम ने अपने सभी भाइयों के प्रति सगे भाई से बढ़कर त्याग और समर्पण का भाव रखा और स्नेह दिया। इसी कारण से भगवान राम के वनवास जाते समय लक्ष्मण जी भी उनके साथ वन गए। यही नहीं भरत ने श्री राम की अनुपस्थिति में राजपाट मिलने के बाद भी भगवान श्री राम के मूल्यों को ध्यान में रखकर सिंहासन पर रामजी की चरण पादुका रख जनता की सेवा की।

भगवान श्री राम ने कभी भी कहीं भी जीवन में मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। माता-पिता और गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए वह ‘क्यों’ शब्द कभी भी मुख पर नहीं लाए। वह एक आदर्श पुत्र, शिष्य, भाई, पति, पिता और राजा बने, जिनके राज्य में प्रजा सुख-समृद्धि से परिपूर्ण थी।

Shri Ram bhagwan stuti Hindi

“श्री रामचंद्र कृपालु” प्रार्थना को सामान्य रूप से “श्री राम स्तुति” के नाम से जाना जाता है। यह स्तुति गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा लिखी गई एक पत्रिका में पाई गई है। यह सोलहवीं शताब्दी में लिखी गई थी जिसमे की संस्कृत और अवधी दोनों भाषाओं का समावेश पाया जाता है।

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Shri Ram Stuti | श्री राम स्तुति

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन
हरण भवभाय दारुणम्
नवकंज लोचना कंजा मुख कारा
कंजा पद कंजारुणम

श्री राम.. श्री राम …!

कंदरपा अगनीता अमिता छवि
नवा नीला नीरारा सुंदरम
पातपीता मनहूम तारिता रुचि-शुचि
नवमी जनक सुतावरम

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन
हरण भवभाय दारुणम् ……!

भजु दीना बंधु दिनेश दानव
दैत्य वंश निकंदनम
रघुनन्द आनन्द काण्ड कौशल
चंद दशरथ नंदनम

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन
हरण भवभाय दारुणम् …. !

सिरा मुकुट कुंडला तिलक चारु
उदारु अंग विभूषणम्
आजानु भुजा शर चापधारा
संग्राम-जीता-खरा दूषणम

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन
हरण भवभाय दारुणम् ….!

इति वदति तुलसीदास शंकर
शीश मुनि मनरंजनम
मम हृदयकंज निवास कुरु
कामादि खलदला गंजनम

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन
हरण भवभाय दारुणम्
नवकंज लोचना कंजा मुख कारा
कंजा पद कंजारुणम

श्री राम.. श्री राम…..!!

श्री राम स्तुति की पीडीऍफ़ फाइल यहाँ डाउनलोड करें | Download Shri Ram Stuti in PDF (Hindi Lyrics)

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shri ram stuti arth sahit hindi

श्री राम स्तुति अर्थ सहित

श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।

अर्थ:
हे मन कृपालु श्री रामचन्द्र जी का भजन कर। वे संसार के जन्म-मरण रूपी दारुण भय को दूर करने वाले हैं। उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान हैं। मुख-हाथ और चरण भी लालकमल के सदृश हैं ॥१॥

कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।

अर्थ:
उनके सौन्दर्य की छ्टा अगणित कामदेवों से बढ़कर है। उनके शरीर का नवीन नील-सजल मेघ के जैसा सुन्दर वर्ण है। पीताम्बर मेघरूप शरीर मानो बिजली के समान चमक रहा है। ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मैं नमस्कार करता हूँ ॥२॥

भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।

अर्थ:
हे मन दीनों के बन्धु, सूर्य के समान तेजस्वी, दानव और दैत्यों के वंश का समूल नाश करने वाले, आनन्दकन्द कोशल-देशरूपी आकाश में निर्मल चन्द्रमा के समान दशरथनन्दन श्रीराम का भजन कर ॥३॥

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।

अर्थ:
जिनके मस्तक पर रत्नजड़ित मुकुट, कानों में कुण्डल भाल पर तिलक, और प्रत्येक अंग मे सुन्दर आभूषण सुशोभित हो रहे हैं। जिनकी भुजाएँ घुटनों तक लम्बी हैं। जो धनुष-बाण लिये हुए हैं, जिन्होनें संग्राम में खर-दूषण को जीत लिया है ॥४॥

इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।

अर्थ:
जो शिव, शेष और मुनियों के मन को प्रसन्न करने वाले और काम, क्रोध, लोभादि शत्रुओं का नाश करने वाले हैं, तुलसीदास प्रार्थना करते हैं कि वे श्रीरघुनाथजी मेरे हृदय कमल में सदा निवास करें ॥५॥

॥ छंद ॥

मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।

अर्थ:
जिसमें तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वही स्वभाव से सुन्दर साँवला वर (श्रीरामन्द्रजी) तुमको मिलेगा।
वह जो दया का खजाना और सुजान (सर्वज्ञ) है, तुम्हारे शील और स्नेह को जानता है ॥६॥

एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।

अर्थ:
इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर जानकीजी समेत सभी सखियाँ हृदय मे हर्षित हुईं।
तुलसीदासजी कहते हैं, भवानीजी को बार-बार पूजकर सीताजी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चलीं ॥७॥

॥ सोरठा ॥

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।

अर्थ:
गौरीजी को अनुकूल जानकर सीताजी के हृदय में जो हर्ष हुआ वह कहा नही जा सकता। सुन्दर मंगलों के मूल उनके बाँये अंग फड़कने लगे ॥८॥

इति श्री गोस्वामी तुलसीदास रचित श्री राम स्तुति संपूर्णम् ॥


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