सनातन संस्कृति में हर विशेष पूजन के अवसर पर सबसे पहले श्री गणेश जी की कथा कहने का विधान है। आइये हम जानते है वह कौन सी कथा है जो हर अवसर पर सबसे पहले कही जाती है। Ganesh ji ki katha का श्रवण बहुत ही पुण्यदाई माना जाता है। बच्चों में भी यह कथा बहुत लोकप्रिय है।
गणेश जी की कथा | ganesh ji ki katha
श्री गणेश जी और बुढ़िया माई की कहानी | shri ganesh aur budhiya mai ki kahani lyrics Hindi me
एक गांव में, एक अंधी बुढ़िया रहती थी। वह अपने बेटे-बहू और बीमार पति के साथ रहती थी और भगवान भक्ति में अपना समय व्यतीत करती थी। बहुत ही गरीब होने के कारण उसका परिवार बड़ा तकलीफ में रहता था लेकिन वह बुढ़िया हमेशा गणेश जी की पूजा बड़े मन से किया करती थी। उसे गणेश जी पर अटूट विश्वास था।
एक दिन गणेश जी ने उस बुढ़िया की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और उससे कहा :
“बुढ़िया! तू जो चाहे मुझसे मांग ले। मैं तेरी भक्ति से प्रसन्न हूँ और तू जो मांगेगी मैं तुझे दूंगा।”
बुढ़िया भोली थी, वह बोली :
“मैं तो आपके दर्शन पा कर ही संतुष्ट हो गई प्रभु !”
गणेश जी ने कहा:
“मेरे दर्शन ऐसे व्यर्थ नहीं जा सकते। तुझे कुछ तो मांगना ही होगा। ”
बुढ़िया : “मुझे तो कुछ मांगना नहीं आता मैं क्या मांगू ?”
तब गणेश जी ने उसे कहा:
“ठीक है मैं कल फिर आऊगा तब तक तू सोच लेना की क्या मांगना है। तू जो भी मांगेगी मैं तुझे दे दूंगा।”
यह कह कर गणेश जी अंतर-धान हो गए।
तब उस बुढ़िया ने यह बात अपने बेटे को बताइ और कहां :
“गणेश जी मुझसे प्रसन्न है और कहते हैं कि तू जो मांगेगी मैं दूंगा। तो बेटा बता में गणेश जी से क्या मांगू ? “
पुत्र ने उस बुढ़िया से कहा:
“मां तू तो धन मांग ले।”
फिर बुढ़िया ने अपनी बहू से पूछा तो बहू ने कहा:
“मां जी आप तो पोता मांग लो।”
फिर बुढ़िया ने यही सवाल बीमार पति से भी पूछा तो उसने कहा की मेरी अच्छी सेहत मांग लो।
तब बुढ़िया के मन में आया की एक बार अपनी पड़ोसन से भी पूछ लेती हूँ। तब उसकी पड़ोसी ने कहा:
“अरे अम्मा! तेरे बहू -बेटे तो अपने मतलब की मांग रहे हैं। तुम तो अपना सोचो, तुम तो देख भी नहीं सकती तो धन और नाती-पोते का आनंद कैसे लोगी। तुम तो अपनी आंखों की ज्योति मांग लो, ताकि जितने भी वर्ष तुम्हारा जीवन है तुम उसे सुख से बिता सको। “
फिर अगले दिन जब बुढ़िया भगवान की पूजा करने लगी तो गणेश जी फिर प्रकट होते हैं और पूछते हैं:
“बुढ़िया सोचा तूने की तुझे क्या चाहिए? मांग ले जो तुझे मांगना है…”
तब बुढ़िया ने कहा:
“मैं चाहती हूँ में अपने पति की गोद में अपने पोते को सोने के झूले में झूलता हुआ देखू, और दादा -पोते को खूब मस्ती करते हुए देखू। ”
यह सुनकर गणेश जी बुढ़िया की चतुराई देख कर बहुत प्रसन्न हुए और बोले:
“अरी बुढ़िया, तूने तो मुझे ठग ही लिया! एक ही वरदान में तूने सब के लिए सब कुछ मांग लिया। फिर भी जो तूने मांगा है, वचन के अनुसार में तुझे सब कुछ दूंगा।”
और “तथास्तु” यह कह कर गणेश जी अंतर-धान हो गए।
उधर बुढ़िया मां ने जो कुछ भी मांगा था उसे सब कुछ मिल गया।
हे गणेश जी महाराज! जैसे आपने उस बुढ़िया मां को सब कुछ दिया वैसे ही सबको देना।
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