माँ नर्मदा का सभी जीवनदायिनी नदियों में अपना अलग ही स्थान है। नर्मदा जी के जीवन की कथा को अगर हम जानेगे तो समझ पाएंगे उनके जीवन मूल्यों में समर्पण और प्रेम की पवित्रता का महत्त्व इसलिए नर्मदा जी को कुवारी कन्या मानकर अलग ही आदर दिया जाता है। तो क्यों न ऐसी पूजनीय नदी, नर्मदा मैया की आराधना narmada ashtak के माध्यम से की जाए।
श्री नर्मदा अष्टक (सरल भाषा में )
॥ श्री नर्मदा अष्टकम ॥ Narmada Ashtakam
सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम
द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम
कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥1॥
त्वदम्बु लीन दीन मीन दिव्य सम्प्रदायकम
कलौ मलौघ भारहारि सर्वतीर्थ नायकं
सुमस्त्य कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक् शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥2॥
महागभीर नीर पुर पापधुत भूतलं
ध्वनत समस्त पातकारि दरितापदाचलम
जगल्ल्ये महाभये मृकुंडूसूनु हर्म्यदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥3॥
गतं तदैव में भयं त्वदम्बु वीक्षितम यदा
मृकुंडूसूनु शौनका सुरारी सेवी सर्वदा
पुनर्भवाब्धि जन्मजं भवाब्धि दुःख वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥4॥
अलक्षलक्ष किन्न रामरासुरादी पूजितं
सुलक्ष नीर तीर धीर पक्षीलक्ष कुजितम
वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥5॥
सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपात्रि षटपदै
धृतम स्वकीय मानषेशु नारदादि षटपदै:
रविन्दु रन्ति देवदेव राजकर्म शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥6॥
अलक्षलक्ष लक्षपाप लक्ष सार सायुधं
ततस्तु जीवजंतु तंतु भुक्तिमुक्ति दायकं
विरन्ची विष्णु शंकरं स्वकीयधाम वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥7॥
अहोमृतम श्रुवन श्रुतम महेषकेश जातटे
किरात सूत वाड़वेषु पण्डिते शठे नटे
दुरंत पाप ताप हारि सर्वजंतु शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥8॥
इदन्तु नर्मदाष्टकम त्रिकलामेव ये सदा
पठन्ति ते निरंतरम न यान्ति दुर्गतिम कदा
सुलभ्य देव दुर्लभं महेशधाम गौरवम
पुनर्भवा नरा न वै त्रिलोकयंती रौरवम ॥9॥
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे
नमामि देवी नर्मदे, नमामि देवी नर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे
नर्मदाष्टक का महत्व | Narmad ashtak ka mahatva
भारतवर्ष के मध्य प्रदेश राज्य में नर्मदा नदी को पूजनीय माता माना जाता है। इन्हें मां नर्मदा के नाम से ही संबोधित किया जाता है। मां नर्मदा का उद्गम में मैखल पर्वत के अमरकंटक से माना जाता है। यह महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश इन तीनों राज्यों से बहती हुई अंत में समुद्र में समा जाती है।
नर्मदा के जल का बहुत महत्व माना गया है। नर्मदा जी के गुण व उनका महत्व, उनकी शक्तियों का वर्णन ही इस नर्मदा अष्टक में किया गया है। नर्मदा अष्टक के माध्यम से हम जीवन दायिनी मां नर्मदा की आराधना करते हैं। उनके उद्देश्य पुण्य कर्म उनकी उत्पत्ति का वर्णन करके हम उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं यही उद्देश्य है जो नर्मदा अष्टक लिखा गया और लाखों लोगों के बीच यह सुप्रसिद्ध हुआ उनकी आस्था इसमें समय और आज इन तीनों राज्यों की लाखों लोग नर्मदा को सिर्फ एक नदी नहीं मानते हुए मां के समान उनकी पूजन करते हैं।
मंत्र का मूल रूप: श्री नर्मदाष्टकम | Original Version of Narmada Ashtak
सबिन्दुसिन्धुसुस्खलत्तरङ्गभङ्गरञ्जितं ,
द्विषत्सु पापजातजातकारिवारिसंयुतम् । …… पूरी पोस्ट यहाँ पढ़ें
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अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Questions
माँ नर्मदा से संबंधित रोचक प्रश्न जिनकी जानकारी आपको होना चाहिए :
प्रश्न: माँ नर्मदा नदी को किसकी बेटी माना जाता है ?
उत्तर: माँ नर्मदा नदी को मैखल पर्वत की पुत्री माना जाता है। क्योकि मैखल पर्वत के अमरकंटक से ही माँ नर्मदा निकलती है इसलिए मैकल पर्वत को नर्मदा जी के पिता सामान माना जाता है।
प्रश्न: ‘नमामि देवी नर्मदे’ का मतलब क्या होता है?
उत्तर: ‘नमामि देवी नर्मदे’ का मतलब है की ‘हे नर्मदा माता आप हम सभी की देवी हैं व पूजनीय हैं। इसलिए हम आपको नमन करते है।“
प्रश्न: ऐसा क्यों कहा जाता है की नर्मदा नदी उल्टी बहती है?
उत्तर: भारत देश की सभी नदियाँ पश्चिम से पूर्व की दिशा में ही बहती है लेकिन सिर्फ माँ नर्मदा ही एक मात्र ऐसी नदी है जो पूर्व से पश्चिम की दिशा में बहती है व् अरब सागर में समा जाती है। इस भौगोलिक घटना का कारण रिफ्ट वैली को बताया जाता है।
प्रश्न: भारत की ऐसी कौन सी नदी है जिसका हर पत्थर शिवलिंग होता है?
उत्तर: भगवान शिव ने नर्मदा जी को आशीर्वाद दिया था की नर्मदा जी का जल जिस भी पत्थर को छूटा हुआ बहेगा वह सारे पाषाण शिवलिंग स्वरुप ही हो जायेगे।
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